Raniganj Coal Mine Rescue: भारत के इतिहास में कई साहसी कारनामें दर्ज हैं, जो मानवता की अदम्य इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रमाण देते हैं। ऐसे ही एक अविस्मरणीय कारनामे की कहानी है रानीगंज कोयला खदान बचाव की। 26 सितंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र में महाबीर कोलियरी में एक बड़ा हादसा हुआ। भूस्खलन के कारण खदान का एक हिस्सा ध्वस्त हो गया और 71 खनिक फंस गए। यह स्थिति अत्यंत विकट थी, क्योंकि खदान के अंदर पानी बढ़ता जा रहा था और बचाए गए खनिकों के लिए समय बहुत कम था।
खनिकों को बचाने के लिए बचाव अभियान शुरू किया गया। विभिन्न संस्थाओं और संगठनों के लोग इस अभियान में शामिल हुए। बचाव दल खनिकों तक पहुंचने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, लेकिन खदान के अंदर की ख़राब स्थिति और बढ़ते पानी के स्तर के कारण प्रयास विफल हो रहे थे।
इस दौरान भारत सरकार ने हर संभव मदद पहुँचाने का प्रयास किया। सेना के इंजीनियरों को भी बचाव अभियान में शामिल किया गया। इंजीनियरों ने एक ऐसा बचाव अभियान तैयार किया, जो पहले कभी नहीं किया गया था। उन्होंने खदान के ऊपर एक बड़ा गड्डा खोदने का फैसला किया और फिर उस गड्डे से गुजरकर एक सुरंग बनाकर खनिकों तक पहुँचने की योजना बनाई।
यह योजना बहुत जोखिम भरी थी और इसमें सफलता की संभावना कम थी। लेकिन बचाव दल ने हार नहीं मानी। उन्होंने दिन-रात मेहनत करके बचाव कार्य जारी रखा। लगभग दो महीने की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार इंजीनियरों को सफलता मिली। उन्होंने खनिकों तक पहुँचने वाली सुरंग बना ली।
अब अगला चरण खनिकों को सुरक्षित बाहर निकालने का था। इसके लिए इंजीनियरों ने एक विशेष प्रकार का कैप्सूल तैयार किया। इस कैप्सूल को सुरंग के माध्यम से खदान के अंदर तक उतारा गया और फिर एक-एक करके खनिकों को कैप्सूल के अंदर डालकर उठा लिया गया। इस अभियान के दौरान कुल 65 खनिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
रानीगंज कोयला खदान बचाव अभियान एक अदम्य साहस और मानवता की जीत की कहानी है। इस अभियान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि मानवता के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।